Menu
blogid : 10038 postid : 3

अन्ना बनाम संसद

From My Diary
From My Diary
  • 17 Posts
  • 8 Comments

अब ऐ सुनते सुनते भी लगता है मन ही उब जायेगा की अब भ्रस्टाचार रोकने के लिए एक सशक्त लोकपाल बिल कभी पास हो पायेगा भी की नहीं ? पिछले कितने सालो से ऐ बिल अधर में है और शायद अधर में ही रह न जाये . इस बार अन्ना और और उनकी टीम ने इस बारे में कई प्रभावी तरीको से आम जन मानस को जोड़कर आंदोलन को इतना सशक्त बना दिया की हर भारतीय के मन एक उम्मीद सी जग गयी की भ्रस्टाचार पर अब कोई ठोस और कारगर कानून बन कर ही रहेगा.ऐ आम जनता की भ्रस्टाचार के प्रति एक दबा आक्रोश था जो अन्ना के आंदोलन में फुट पड़ा. मगर राजनितिक हथकंडो के आगे अन्ना की नहीं चली , एक लचर पचर लोकपाल संसद में लाकर खूंटी पर टांग जरुर दिया गया . अन्ना का आन्दोलन बड़े सुनियोजित और स्वस्थ तरीके से शुरू हुआ जिससे उम्मीद थी एक परिणाम जरुर मिलेंगा , मगर अन्ना की टीम कब अपने मूल रस्ते से भटक गयी शायद इसका अंदाजा टीम अन्ना को भी हुआ. अधिक महत्व्कंछा और बड़बोलापन ही अन्ना की टीम के लिए नुकसानदायक बन गया . इसमें कुटिल तथा चालक राजनेताओ की बड़ी भूमिका रही मगर क्या टीम अन्ना कही चूक नहीं गई ?
मुझे लगता है पिछले साल आन्दोलन के अच्छे शुरुयात के बाद बिच में ही अन्ना अपने मूल से भटक गये . अन्ना शारीरिक और मानसिक रूप से अब वैसे स्वस्थ निश्चय ही नहीं रह गये है जो पूर्व में थे, शायद उन्हें अपनी रणनीतियो के लिए स्वंय से जयादा दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है जो मेरे हिसाब से उनके लिए घातक होता जा रहा है.
आंदोलन के शुरूयाती दिनों में टीम अन्ना के व्यवहार से लगा की वो जैसे कांग्रेस विरोधी व्यवहार बना कर आन्दोलन को चलाएगी और कांग्रेस शायद दवाब में या अपने वोट में सेंध देखकर लोकपाल के प्रति चाहे या अनचाहे में इसे पास करवाने के लिए अपना जोर लगाएगी और सहानभूति या सेहरा अपने सर ले लेगी.
अन्ना के इसी मसाले को (कांग्रेस विरोधी) को भुनाने के लिए भाजपा ने पूरी तयारी भी कर ली , और अन्ना पर भाजपा तथा संध से मिले होने का आरोप भी लगा . जिसे मिटाने के लिए अन्ना ने सभी राजनितिक दलों पर ही निशाना साधना शुरू कर दिया.
मामला सीधे संसद को चुनौती का बन गया. अब आंदोलन अन्ना और भ्रस्टाचार के बिच न होकर अन्ना और संसद के बिच का बन गया या कहा जाये तो बना दिया गया
बड़े बड़े नेताओ ने गड़े गड़े मुर्दे उखाड डाले.
केजरीवाल, भूषण , किरण बेदी जैसे सभी लोगो पर आरोप लगने लगे .
मुझे लगता है यही वो समय रहा जब आम जनमानस की भागीदारी अन्ना के आंदोलन से घटने लगी. एक तरफ वो नेताओ से समर्थन मागने उनके घर जाकर मिले , कितने नेताओ को दूसरी बार अपने मंच पर आमंत्रित किया मगर दूसरी तरफ सम्पूर्ण राजनेताओ को ही बेईमान बना डाला , भले ही ऐ बाते वो न करते हो मगर उन्ही के मंच से ही बोली जाती है पिछले दिनों उनके मंच से कही गई बातें उनकी तल्खी और बढ़ा ही गई है
लोकपाल नेतागण चाहे तो पास भी करवा सकते है मगर ऐ उनकी अपनी मर्जी का लोकपाल होगा अपने फायदे नुकसान का लोकपाल .
हमारे देश के और सभी तमाम कानूनों की तरह इसमें भी वो सारी काट छाट और गुंजाईश होगी जो राजनेताओ को हमेशा की तरह बचाती रहेगी.
और अन्ना और उनकी टीम का सारा परिश्रम व्यर्थ जाएगा और श्रेय के बदले कुछ और न मिल जाये.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply