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एकांत

From My Diary
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कहते है शांत ओर स्थिर वातवरण में मनुष्य अपने आप से अपनी अंतरात्मा से संवाद कर सकता है , मानव अपनी अंतरात्मा से झूठा संवाद नहीं कर सकता .ओरो के सानिध्य वाले माहोल में मनुष्य वो बातें करता है जो उस परिस्थिति के अनिकुल हो , यह मानव का जातिगत दोष ही कहा जायेगा की वो हर लग लग परिस्थिति में उसी अनुकूल ढल जाता है और उसी प्रारूप में बातें करता है जो स्थिति की मांग है . मगे एकांत में मानव मात्र अपने आप से बातें करता है , वो सत्य असत्य सही गलत की व्याख्या सही रूप में कर सकता है.
अकेले में की गयी आत्मसंवाद की बातों में झूठा दंभ नहीं होता , कोई प्रदर्शन नहीं होता .न ही मनुष्य किसी आत्मश्लाघा में अपने आप को कोई झूठी सान्तवना तो दे सकता है , परन्तु अंतर्मन से झूठा संवाद नही कर सकता .
जहा ताक मेरा मानना है की , मानव को अपने सरे किये कृत्यों अपर विचार करना है तो उसके लिए एकांत अत्यंत आवश्यक है , एकान्त का अर्थ एकाक्ग्रचित , निस्वार्थ , निश्छल , और अंतर्मन से सीधा एवं सरल संवाद .
जहा कोई दंभ नहीं , कोई दिखावा नहीं बस अपनी आत्मा से सार्थक साक्छात्कार.
और ऐसी परिस्थिति के निर्माण के लिए कुछ विशेष करने की भी आयाश्य्कता नहीं . बस मानव और एकांत .
एकांत ही कई या यु कहे तो सारे अविष्कारो और उपलब्धियो की जननी है बिना एकांत के आप एकाग्रचित नहीं हो सकते और बिना एकाग्र हुए न कोई रचना न ही कोई सरचना .
भीड़ में विचार आ सकते है मगर आविष्कार नहीं , ऐसे समय में मैं लंबे समय से अनुभव कर रहा हूँ की , मै तो रचना या आविष्कार तो नहीं कर पाया , हा मगर अपनी आत्मा से तो थोड़े समय के लिए सार्थक और सीधा संवाद तो हो ही जाता है .और यही आत्मसंवाद भविष्य की अनिश्चित नीतियो के निर्धारण में बड़ी महत्वपूर्ण सहायक होता है , एक पथ प्रदर्शक के रूप में . आज पुन्ह मैंने अपनी आत्मा से जैसे संवाद किया .संवाद से एक ही प्रश्न यक्झ की तरह सामने आ खड़ा हुआ है. मैं उस प्रश्न को अभीतक व्यक्तिगत बनाये हुए हूँ , सार्वजनिक करने की इक्छा नहीं है . सार्वजनिक होने से शायद उन लोगो को ठेस पहुचे जो परोक्छ या किसी और रूप से जुड़े हुए है .
फ़िलहाल मैं उस प्रश्न के आगे निरुत्तर हूँ , पर निरंतर प्रयत्नशील हूँ . भविष्य में आप प्रबुद्ध लोगो से इसे साझा करने की चेष्टा करूँगा , अगर उत्तर न मिला तो.

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