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आखिर भाजपा है कहा ?

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कांग्रेस आज अगर कोई बात डंके की चोट पर करती है तो उसका कारण की यही है की उसकी मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा लाभ उठाने की स्थिति में रहने के बाद भी लाभ उठाने लायक नहीं है
और यही कांग्रेस सी सबसे बड़ी ताकत है.
आखिर भाजपा है कहा ?
पूर्वोत्तर के राज्यों मसलन , मेघालय , नागालैंड , आसाम , सिक्किम , मणिपुर में भाजपा नगण्य है , या यु कहे की भाजपा का वहा कोई अस्तित्व ही नहीं है तो बुरा नहीं होगा . दूसरी और दक्षिण के राज्यों जैसे , तमिलनाडु , केरल , आन्ध्र प्रदेश में कमोवेश भाजपा का पूर्वोत्तर के राज्यों की जैसा ही हाल है, यहाँ भी भाजपा की उपस्थिति नगण्य है . दक्षिण में कर्नाटक ही एक मात्र ऐसा राज्य है जहा भाजपा दमदार में है , लेकिन उसकी आपस की अंतर्कलह इस राज्य में ऐसी स्थिति में पहुच चुकी है की अगले चुनावों में उसका सफाया तय है . इससे तो साफ है की भाजपा की स्थिति इन राज्यों में वैसी ही बनी हुई है जैसे की पूर्व में थी . यहाँ भाजपा के वोट जरा सी भी बढ़ोतरी नहीं दिखाई देती है उलटे जहा ताक की गिरावट ही आई है . बचा महाराष्ट्र तो वहा सीट साफ साफ चार भागो में बटटी नजर आ रही है , वहा कांग्रेस और एनसीपी के गटबंधन ने भाजपा को पिछले १५ सालो से सत्ता से बहार किया हुआ है , बाकि कसर राज ठाकरे के उदभव से पूरी हो गयी . यहाँ भाजपा को नितिन गडगरी का गृह राज्य होने से भी कोई फायदा नहीं होने वाला .
इधर सिर्फ गोवा में ही भाजपा नजर आती है जो की सिर्फ वहा के मुख्यमंत्री मनोहर पारीख की व्यक्तिगत उपलब्धि है ऐ उनकी अपनी साफ सुधरी छवि की बदोलत है
उत्तर में जम्मू कश्मीर में भाजपा केवल जम्मू तक ही सिमित है , वहा ही पैंथर पार्टी जैसी पार्टिया उसी के वोट बैंक में सेंध लगा रही है ,
हरियाणा में भाजपा चौथे स्थान की पार्टी है यहाँ भी उसे कोई जनाधार मिलता नहीं दिखाई देता है पंजाब में भाजपा अकालीदल की पिछलग्गू है दोनों बादल का अपना अलग ही राग है
यहाँ भाजपा पहले की तरह ४ या ५ सीटों पर मजबूत है , बाकि कुछ नहीं .
बंगाल और उडीसा में आज की तारीख में क्षेत्रीय पार्टियो का बर्चस्व है यहाँ भी कोई आशा दिखाई नहीं देती .
ले देकर भाजपा आज भी केवल हिंदी भाषीय राज्यों में ही सिमटती दिखाई दे रही है
राज्यों में हिंदी भाषी दिल्ली, जो कभी भाजपा का गढ़ था , वहा शिला दीक्षित ने अकले ही भाजपा का सफाया कर दिया है . और ऐ निरंतर पिछले तीन विधानसभा चुनावों से साफ पता चलता है .
हिंदी भाषी राज्यों में बाकी बचते है , उत्तर प्रदेश , बिहार , राजस्थान , गुजरात . झारखण्ड और छत्तीसगढ़ .
उत्तर प्रदेश में भी भाजपा सपा , बसपा , कांग्रेस के बाद चौथे स्थान की पार्टी है यहाँ भी उसे कोई सुधार होता नहीं दीखता . यहाँ भी सत्ता विरोधी मतों का फायदा ले देकर सपा और बसपा को ही मिलेगा .
बिहार में भाजपा नितीश कुमार से बंधी हुई है और यहाँ जदयु के शर्तों पर ही उसे चुनाव लड़ना होगा जो की आसान नहीं है . नितिश की अपनी नीतिया अपना फार्मूला है .
झारखण्ड में भी चार दावेदार है भाजपा कान्ग्रेस जैसी राष्ट्रिय पार्टियों को मरांडी और शिबू सोरेन से जूझना पड़ेगा .
कुल मिलाकर गुजरात , राजस्थान और छत्तीसगढ़ ही ऐसे राज्य बचते है जहा भाजपा मजबूत है और इन राज्यों में सबसे आगे है
कुल मिलकर अब तीन चार राज्यों के भरोसे तो केन्द्र की सत्ता में नहीं आया जा सकता .
आज की भाजपा की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक में आडवाणी जी ने इन सारी बातों को ध्यान में रखकर ही कहा की .”एनडीऐ का विस्तार करना पड़ेगा “
इसके अलावा भाजपा के पास और दूसरा कोई रास्ता नहीं है कांग्रेस को सत्ता से
हटाने का .
मगर इनके साथ और कौनसे नए दल आयेंगे ?
ममता आने से रही , जयललिता अपने जोड़ तोड़ में माहिर है , चंद्रबाबू नायडू खुद अपनी जमीन बनाने के लिए दूसरे पर भरोसा किये बैठे है , नवीन पटनायक की अपनी अलग डफली है .
भाजपा की दूसरी सबसे बड़ी मज़बूरी प्रधानमंत्री के पद को लेकर है , अपनी पार्टी में उसे सिर्फ नरेन्द्र मोदी से ही आशा है जिनकी असर राष्टीय राजनीति पर पड़ सकता है मगर उससे भी बड़ी मुसीबत है की भाजपा अगर मोदी को अपना प्रधानमंत्री घोषित कर देती है तो बाकि नए दल तो आने से रहे , पुराने दलों को समेत कर रखना और राजी करना ही भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती होगी .

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